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ACI
१५४ पूर्वमाडिरसैविप्रैः शापो दत्तश्च कोपतः । विनापराधमस्माकं तच्छापान्मोक्षणं कुरु ॥
वसिष्ठजी मान्धाता से कहने लगे कि इस प्रकार लक्ष्मीके वचन सुनके आनन्दसे युक्त वे सैन्धवारण्य के ब्राह्मण बोले कि हे देवि! पहिले जो क्रोध करके अंगिरस ब्राह्मणोंने हमें, विना अपराध श्राप दे दिया था कि तुम्हें वेद नहीं आवेगा उस श्राप से मुक्त करो यही वर हम माँगते हैं।
श्रीरुवाच । वेदवेदाङ्गन्तत्वज्ञा भविष्यथ द्विजर्षभाः।। ___ तब लक्ष्मीने कहा कि है उत्तम ब्राह्मणो ! तुम वेद और वेदाङ्ग [शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निघएटु (निरुक्त), छन्द और ज्योतिष ] के तत्वके जाननेवाले होओगे, अर्थात् पहिलेके श्राप से मुक्त होओगे। उदारा राज्यपूज्याश्च शुद्धाः सन्तोषिणः सदा । ब्राह्मणानां पुष्टिकरा धर्मपुष्टिकरास्तथा ॥ ज्ञानपुष्टिकरास्तस्मात् पुष्करणाख्या भविष्यथ
तथा तुम (१) उदार, (२) राज्य पूज्य, (३) शुद्ध, (४) स. न्तोषी, (५) ब्राह्मणों की पुष्टि करनेवाले, (६) धर्मकी पुष्टि कर. नेवाले, और (७) ज्ञानकी पुष्टि करनेवाले होओगें । इसलिये तुम 'पुष्करणे' कहलाओगे। विवाहे कार्य समये सान्निध्यं मम सर्वदा ।
इसके उपरान्त लक्ष्मीजीने यहभी प्रणकिया कि तुम्हारे वि. बाइ तथा कार्य में सदा आके में उपस्थित होऊंगी अर्थात् तु
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