Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 172
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगता ब्राह्मणाः सर्वे धर्मतत्वविचक्षणाः ॥ मुनयस्तुष्टुवुर्लक्ष्मीं सुरभिं लोकमातरम् । ऐसे समय में धर्म तत्व में विचक्षण सैन्धवारण्य के वे सब ब्राह्मण मुनि लोग आये और लक्ष्मी स्वरूप सुरभिकी इस प्र कार स्तुति करने लगे । सैन्धवारण्यवासि मुनय ऊचुः । नमो देवि महालक्ष्मि सुरभि श्रीहरिप्रिये । इंदिरे जगतां मातर्धर्मरक्षापरायणे । हे देवी ! हे महालक्ष्मी ! हे सुरभि ! हे हरि मिये ! हे जगतूकी माता ! हे धर्मकी रक्षा करनेदारी इन्दिरा ? आपको नम स्कार करते हैं । देव्युवाच । तपस्विनो द्विजश्रेष्ठा वणुध्वं वरमुत्तमम् | राज्ञा च पूजिताः सर्वे ह्यपराधक्षमाकृता ॥ युष्माकं क्षमया स्तुत्या तुष्टाहं परमेश्वरी । तव सुरभि देवी प्रसन्न हो के बोली कि हे तपस्वी ब्राह्मणो! अपराध को क्षमा करनेवाले श्री पुज्ज राजाने तुम्हारा पूजा आदि सत्कार किया है और मैं भी तुम्हारी क्षमा तथा स्तुति से प्रसन्न हुई हूँ । अब तुम कोई उत्तम वरदान माँग को । वसिष्ट उवाच । इति तद्वचनं श्रुत्वा लक्ष्म्याश्च द्विजपुंगवाः । सैंधवारण्यमुनय ऊचुः सर्वे मुदायुताः ॥ For Private And Personal Use Only

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