Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 170
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५१ दूना ऊचुः । नमोस्तु वो द्विजन्मानः सर्वेभ्यो वेदवित्तमाः। आकारयति वो राजा श्रीपुओ नाम विश्रुतः ॥ वे राजाके दून सैन्धगरण्य के ब्राह्मणों को विनयसे कहने लगे कि हे वेद के ज्ञाता ब्राह्मणो ! आप सबको हमारा नमस्कार है। और श्रो पुञ्ज नाम विख्यात राजाने आपको श्रीमाल क्षेत्र में बुलाने के लिये हमें भेजा है सो आप कृपा करके वहां पधारें। वसिष्ठ उवाच । इत्याकर्ण्य ततो वाक्यं दूतानाममृतोपमम् । ब्राह्मणा गर्गमामन्त्र्य श्रीमालं गन्तुमुद्यताः ॥ ततः प्राप्ता द्विजाः सर्वे हर्षपर्याकुलेक्षणाः। तानागतान् द्विजान् सर्वन सैंधवारण्यवासिनः॥ अर्घपाद्यादिविविधैरुपचायोक्तिभिः। पूजयामास भूपालो वासोऽलङ्करणैस्तथा । इस प्रकार दुतों के अमृत सदृश वचन मुन के अपने ममुदाय के मुख्य महर्षि गर्गाचार्य नीकी आज्ञा लेके सैन्धवारण्यके ब्राह्मण श्रीमाल क्षेत्र में आये । उन आनन्द युक्त ब्राह्मणों को देख के राजाने उनको अर्घ, पाद्य, और विविध उपचार से यथावत् पूजनादि करके वस्त्र तथा अलंकारादि से बड़ा सत्कार किया। अथ देवो समभ्येत्य प्रत्यक्षा सुरभिर्नुप। श्रीजमनवोत्तुष्टा राजानां द्विजवत्सलाम् ॥ For Private And Personal Use Only

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