Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 171
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरभिरुवाच । एतस्याः कुलकन्यायाः कुलेऽहं देवता नृप । अस्या आर्तस्वरं श्रुत्वा सारिकां स्तम्भमानयम्॥ तुष्टा तव महीपाल बरं वृणु यथारुचि। न मोघदर्शना देवाः स्थितिरेषा सनातनी ॥ इतने में उस कन्या की कुलदेवी 'मुरभि' जिसने सारिका की गति रोक दी थी और जिससे श्रीपुञ्ज राजा सारिका के पास जा पहुँचा था, वहाँ प्रत्यक्ष हुई, और राजापर प्रसन्न होके कहने लगी कि मैं इसके कुल की देवी हूं इस लिये मैंने सारिका को स्तम्भन कि ई है । देवताओं का दर्शन वृथा नहीं जाता अतः तेरी जो इच्छा हो वर माँग ले। राजोवाच । यदि तुष्टासि देवेशि तदिमां मुञ्च सारिकाम् । एवमेव द्विजेन्द्राणां त्राणं कार्य च सर्वदा ॥ तब राजाने नमस्कार पूर्वक देवी से सारिका की गति छुड़ाने और ब्राह्मणों की सदा रक्षा करने की प्रार्थना किई । देव्युवाच । एवमस्तु महाराज यत्तेऽभिलषितं हृदि । मुरभिने राजा की प्रार्थनानुसार सारिका की गति छोड़ दी और ब्राह्मणों की रक्षा करना भी स्वीकार किया। वसिष्ठ उवाच । एतस्मिनन्तरे राजन् संधवारण्यवासिनः । For Private And Personal Use Only

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