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पुष्करणे कहलानेका शास्त्र प्रमाण । स्कन्द पुराणान्तर्गत श्रीमालक्षेत्र माहात्म्बसे उद्धृत ।
स्कन्द पुराणान्तर्गत श्रीमाल क्षेत्र माहात्म्यकी कथा कई अध्यायों में वर्णित है । जिस में श्रीमाली और पुष्करणे ब्राह्मणों के पूर्वजों का वृत्तान भी है। उसमें से पुष्करणे ब्राह्मणों का संक्षिप्त वृत्तान्त 'पुष्करणोपाख्यान' नामक पुस्तकमें एकत्र किया गया है। उसी प्रकार मैं भी उसी श्रीमाल क्षेत्र माहात्म्यकी कथा में के पृथक् २ स्थलों से पुष्करणे ब्राह्मणों के सम्बन्धकी कथा के थोड़से चुने हुये मुख्य२ श्लोक सारांश अभिप्रायार्थ सहित यहाँपर लिखता हूं जिससे पुष्करणे ब्राह्मणों के पूर्वज सिन्धी ब्राह्मणों के पुष्करणे कहलाये जाने लगनेका कारण विदित होगा।
स्कन्द उवाच । देव देव पुनर्वृहि भूभागं किञ्चिदुत्तमम् । यत्र ब्रह्मादयो देवा वसिष्ठाद्यास्तपोधनाः ॥ क्रीडन्ति मातरः सर्वाः कुमारैः सह यत्र च ।
एक समय स्कन्द ( स्वामि कार्तिक ) ने श्री महादेवजी से कहा कि हे देवाधिदेव ! इस भूमिपर जहां ब्रह्मादि देवता, व. सिष्ठादि तपस्वी, और कुमारों के साथ मातृ देवता भी क्रीड़ा करती हैं उस उत्तम भाग का वर्णन कीजिये।
महादेव उवाच । साधु पृष्टं त्वया वत्स भागं श्रेयस्करं भुवः । प्रवक्ष्यामि यथावत्त्वं शृणुष्व गदतो मम ॥
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