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पवित्र अर्बुदारण्य है । वहां लक्ष्मीजी की कृपासे पाँच कोश के घेरे में श्रीमाल नामका क्षेत्र प्रसिद्ध हुआ है । क्यों कि:पुराभूगोः समुत्पन्ना ख्याता श्रीः किल भूमिप । अद्वैतरूपिणी कन्या प्रवुद्धाऽम्बुजलोचना ॥
अश्र कमलसम्नवानुयोगात् ।। कृशानौ ज्वलति सति सनातनः। देवो भृगुदुहितूपाणि पुण्डरोकम सह मनसा संगृहीतवानोशः ।। उस क्षेत्रमें लक्ष्मीजीने भृगु ऋषि के गृह में कन्या का रूप धारण किया था जिसका विवाह श्री भगवान के साथ हुआ।
श्रीरुवाच । इमां भूमि प्रदास्यामि ब्राह्मणेभ्यः समादिता । अत्रांशेन ममैवास्तु निवासः शास्वती समाः ॥
उस विवाह के अन्त में श्रीलक्ष्मोजीने श्रीभगवान् से कहा कि मैं यह भूमि ब्राह्मणों को देके एक अंश से बहुत समय तक यहां निवास करना चाहती हूं।
श्री भगवानुवाच । इत्याख्याय चतुर्बाहुरवोचत् स्वगणान् बहन् । ये केचिन्मुनयः सन्ति तेषां पुत्रा यशस्विनः ॥ पुण्यक्षेत्रेश्वरण्येषु ग्रामेषु नगरेषु वा । तानानयत सम्पूज्य ऋषिपुत्रान् सुवर्चसः ॥
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