Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 161
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृहस्पतिने भी विष्णु से कहा कि ये ब्राह्मण ही अपने में जिसको वयसे, तपसे, विद्यासे और आचरण से श्रेष्ठ मानें उसी को आप भी श्रेष्ठ मानके अर्घ प्रदान कीजिये । सारस्वता ऊचुः ।। नहायनैर्न वलिभिन वास्य पलितं शिरः। ऋषयश्चक्रिरे धर्म योऽनूचानः स नो महान् ॥ विद्यया तपसा चैव वयसाऽऽचरणेन च । देव श्रेष्ठतमोऽस्माकं गौतमोऽर्घमिहार्हति ॥ सारस्वत कहने लगे कि ऋषियों में बड़ा न तो वर्षोंसे. न बुढ़ापेसे, और न श्वेत केश होने ही से होता है। किन्तु ज्ञानवान ही बड़ा होता है । और हममें गौतम ऋषि तो विद्या, तप, आचरण, और आयुमे भी बड़े हैं । अतः अर्घ देने योग्य गौतम ही हैं। आङ्गिरसा ऊचुः । अयमस्मत्कुले श्रेष्ठो वाग्मो वेदार्थवित्तमः । प्रता चागमार्थानामतो ऽर्घ गौतमो ऽईति ॥ इमी प्रकार अङ्गिरस वंशवाले ब्राह्मण भी कहने लगे कि हमारे कुल में श्रेष्ठ, वाणी बोलने में कुशल, वेद का अर्थ जानने वालों में उत्तम और वेदार्थ के अविरुद्ध शास्त्रों के वक्ता ये हो हैं । इसी लिये अर्थ गौतम हो को देना चाहिये । अपर ऋषय ऊचुः । नारायण सुरश्रेष्ठ शङ्खचक्रगदाधर । For Private And Personal Use Only

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