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फिर विष्णुसे भी कहने लगे कि हे सुरेश्वर सभी ब्राह्मण तपस्वी हैं, सभी ब्राह्मण तीर्थ पर रहने वाले हैं, सभी ब्राह्मण लोक में पूज्य है और सभी ब्राह्मण भूमि के देवता हैं। इसलिये पना सम्पूर्ण ही ब्राह्मणों की पृथक् २ करनी चाहिये । क्योंकि एक गौतम ही की पूजा करने से तो ब्राह्मणोंकी पंक्तिमें भेद हो जावेगाकि गौतम तो श्रेष्ठ हैं और अन्य सब मिण नेष्ट। अतः हे पुरुषोत्तम ! आपको चाहिये कि पूजा एक २ करके सम्पूर्ण ब्राह्मणों की करें। इति तेषां वचः श्रुत्वाऽहङ्कारवशवर्तिनाम् । राजन्नागिरसाः सर्वे शेपुस्तान् सिन्धुजान् द्विजान्॥
इस प्रकार उनके अहंकारके वचन सुन के सब अंगिरस ब्राह्मणों ने उन सिन्धी ब्राह्मणों को शाप दे दिया।
आङ्गिरसा ऊचुः । यथा वच्चरितं प्रोक्तं शतशो मुनिपुत्रकैः । तमृर्षि द्विषतो युष्मान् न वेदः संश्रयिष्यति॥
अंगिरस बोले कि जिस गौतम ऋषिके यथावत् सैकड़ों चरित मुनि पुत्रोंने कहे उस ऋषि से तुम द्वेष करते हो अत:तुम्हें वेद नहीं आयेगा।
इत्यमाङ्गिरसैवि प्रैः शप्तास्ते ब्राह्मणा नृप । सिन्धुदेशं तदा जग्मुः सैन्धवारण्यवासिनः ॥
इस प्रकार अंगिरस ब्राह्मणों की ओर से शाप होने पर सैन्धवारण्य के रहनेवाले सभी ब्राह्मण उस यज्ञको छोड़ कर पीछे सिन्ध देश में चले गये।
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