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वसिष्ठ उवाच । वयोवृद्धं तपोवृद्ध विद्यावृद्धं तपोधनम् । गौतमं ते पुरस्कृत्य सोमपाः समुपाविशन् ॥
इस प्रकार एकत्र हुये ब्राह्मण वयोवृद्ध, तपोवृद्ध, और वि. धावृद्ध तथा तपस्यारूपी धनवाले गौतम ऋषिको आगे करके आ बैठे।
ब्रह्मोवाच । पञ्चाशदिह सर्वेषां सहस्त्राणि द्विजन्मनाम् । . यं वेत्सि वरमेतेषामधं तस्मै कुरु प्रभो ॥
उन ब्राह्मणों के समूह को देखके ब्रह्माजी विष्णु से कहने लगे कि यहां ५०००० ब्राह्मण एकत्र हुये हैं। इन में से आप जिसे श्रेष्ठ मानते हैं उसी को अर्घ प्रदान (पूजा) कीजिये ।
श्री कण्ठ उवाच । अर्घमेषां हि सद्वृत्तमर्घमेषां हरे कुलम् । तदमोषु वरं मत्वा ददस्वर्घमघोक्षज ॥
इसी प्रकार महादेवजीने भी विष्णु से कहा कि अर्घ ही इनका सत्य व्रत है और अर्घ ही इनकी कुलीनता है । अतः आप इनमें जिसे श्रेष्ठ जानें उसीको अर्घ प्रदान कीजिये ।
वहस्पतिरुवाच । बयसा तपसा चैव विद्यया ऽऽचरणेन च । एते यमनुमन्यन्ते तस्मै यच्छार्घमच्युत ॥
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