Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 151
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir સર पीछेसे ऐमे फजूल खर्ची करनेवालों ही को नहीं किन्तु उनकी सन्तानको भी कैसे २ कष्ट भोगने पड़ते हैं वे किसी से भी छिपे हुये नहीं है । फिर भी इस पर ध्यान नहीं देना कितनी भूल है ? पर किसी कविका कथन है कि: 1 बोती ताहि विसार दे, आगे की सुध लेप | जो बनि आवे सहज में, तादी में चित देय ॥ अर्थात् जो बात बीत चुकी उसकी चिन्ता छोड़कर आगे के लिये उचित प्रबन्ध करना ही बुद्धिमानों का काम है । अतः स्वजाति के शुभचिन्तक महानुभावों व राज्यमान्य श्रीमन्तों, विद्वानों, तथा वृद्ध पुरुषों आदि पञ्चों को चाहिये कि विना विलम्बके प्रचलित कुरीतियों का तो संशोधन * और प्राचीन सुरीतियों अ ख़याल करनेवाले यदि एक ही वातपर दृष्टि डालेंगे तो उनका यह भ्रमस्त्रयं ही दूर भाग जावेगा कि पहिले इतना द्रव्य नहीं होता तो लक्ष भोज, शेष भोज ( सहस्र भोज ) आदि कार्यों में क्यों कर असंख्य द्रव्य लगा सकते थे ? और नाधाजी व्यास जैसे महानुभाव क्यों कर लक्षों ही रुपये परोपकारी कार्यों में धर्मार्थ लगाकर अपनी अटल कीर्त्ति छोड़ जा सकते थे! इससे निश्चय है कि वे सुरीतियें धनके अभाव वा कंजूसी आदि से नहीं किन्तु सर्व साधारण के भले के लिये बड़ी बुद्धि मानी से बनाई गई थीं । * जोधपुर में कल्लोंने अपने कुटुम्ब के लिये एक 'विवाह प्रबन्ध निय मावली' बनाई है। जब वह बन रही थी तब आशा की गई थी कि इसके बन जाने से अन्यान्य लोग भी इसे स्वीकार करलेंगे जिस से सर्व साधारण का निर्वाह भले प्रकार से हो सकेगा । परन्तु वह आशा नियमावली जैसी चाहिये वैसी नहीं बनी इससे वह केवल मानमी आशा ही हुई। इस नियमावकीको सर्व साधारण के उपयोगी न कहकर यदि अपव्यय करनेवाले धनाढ्यों को अपकीर्तिसे बचानेके लिये ढाल कहदें तो भी अनुचित न होगा | For Private And Personal Use Only

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