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११ उनकी बराबरी करनेकी सामर्थ्य न होनेपरभी उनकोभी लाचारन उन्हीं की देखादेखी करके बहुत क्लेश उठाना पड़ता है। उन कोही नहीं किन्तु अन्तमें स्वयं उन धनाढ्यों तथा उनकी सन्तानको भी अत्यन्त कष्ट सहना पड़ता है। यहां पर क्षमा माँगकर यह कह देना अनुचित न होगा कि पुष्करणों में विवाह आदि के समय प्राचीन मुरीतियों का अनादर करने वालों में तो विशेष शूरवीर जोध. पुर की न्यात और प्राचीन मुरीतियों का किसी कदर अब तक भी पालन करते रहनेवालों में विशेष धन्यवाद के भागी जैसलमेर की न्यात मानी जाती है। यदि सभी जगह जैसलमेर ही की न्यात कासा प्रवन्ध दृढ़ बना रहा होता तो इस जाति के लिये वया कुछ कम सौभाग्य की बात थी ?
विशेष ही विचार का स्थल है कि जिस समय ऐसी सीधी सादी रीतियें चलाई गई थीं उस समय धन स ह रखने की उतनी आवश्यकता नहीं थी जितनी कि इस समय है क्योंकि प. हिले जिस भावस अन्न मिलताथा अब उस भाव इन्धन-वलीता (लकड़ी छाने)-भी नहीं मिलता है, पहिले जिम भाव में धो मिलता था अब उस भावसे दूध भी नहीं मिलता है, पहिले जि. तने में कपड़े बनतेथे अब उतने में सिलाई भी नहीं सझती है। अत: एक ओर तो इस प्रकारकी महँगाई होती जाती है और दूमरी
और आमदनी में भी कमी होती चली जाती है । तिसपर भी तुर्ग यह है कि आजकल की नकली शोभा के लिये दिन दूनी और रात चौगुनी फ़जूल खर्ची भी बराबर बढ़ती ही जाती है। परन्तु - *यहांपर कोई ऐसा ख़याल न करलें कि पहिले इतना द्रव्य नहीं था तभी, ऐसी २ कृपणता ( कंजूसी ) की रीतियें चलाई होगी । किन्तु ऐसा
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