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पुष्करणे ब्राह्मणों की प्राचीनता.
ऊपर लिखे प्रमाणों से स्पष्ट हो विदित हो गया है कि मण्डोर के राजा नाहरराव पड़िहार सं० १२०० के लगभग हुये थे और उन्होंने संवत् १२१२ में पुष्करजीका तालाब खुदवाया अर्थात् जीर्णोद्धार कराया था। परन्तु पुष्करणे ब्राह्मण तो नाहरराव पड़िहार से सैकड़ों ही वर्ष पहिले ही से विद्यमान हैं। इस के कई एक प्रमाण मिलते हैं, जिनमें से थोड़े से यहां लिखता हूं।
विक्रम संवत १२१२ में जब कि मण्डोर के राजा नाहरराव पड़िहारने पुष्करजी का तालाब खुदवाया था उसी • वर्ष में श्रावण मुदि १२ को लुद्रवा नगर के भाटी राजाजैसलजीने अपने नाम पर 'जैसलमेर नगर वसाके अपनी राजधानी वहाँ पर नियत की, तब लुद्रवा नगरमें निवास करनेवाले पुष्करणे ब्राह्मणों को भी अपने साथ लाके जैसलमेर में वसा दिये । और उन पुष्करणों में से जो राज्यके पुरोहित, गुरु, मु. त्सद्दी, किलेदार आदि थे उनको तो किलेके भीतर राज्यके महलोंके समीप ही स्थान देकर वसाये थे जिनको सन्तान आज तक जैसलमेर के किलेमें निवास करती है अर्थात् पुरोहित, व्यास, आचारज, पणिया, विशा आदि जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों के ७०० घर इस समय जैसलमेर के किले में विद्यमान हैं।
संवत् ११२१ में लुद्रवे नगर में पुष्करणे ब्राह्मणा चोवटिया जोशी पोतीरामजी का विवाह हुआ था। विवाह के पीछे जव पहिली ही पहिली होली आई तब वे अपनी स्त्री सहित 'होली' की पूजा करने के लिये गये। वहां दैव योग से पैर फिसल के होली में जा गिरे, और जल मरे । तब उन की स्त्री भी
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