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के राजाने, जिसको यूनानियोंने मैसिकनोज' करके लिखा है, सिकन्दरके सामने आके उसकी अधीनता स्वीकारकर ली । इममे सिकन्दर भी प्रसन्न हो के आगे चला गया। किन्तु इस प्रकार क्षत्रिय धर्म से विरुद्ध कायरता से एक विदेशी विजेताको शिर झुका कर अपने उच्च कुलको कलंकित कर देनेसे राजाके कुलाचार्य पण्डितों ( अर्थात् राज पुरोहित पुष्करणे ब्राह्मणों) ने राजाको बहुत धिकारा, जिमसे अपने पूर्वजों के आत्माभिमानका स्मरण हो आने में राजाने सिकन्दर की सेनाको, जो वहांपर रही थी, मार भगाई । उम सेनाका ना. यक-प्रतिनिधि शासक-'पीथिन' भागकर सिकन्दरके प्रधान सेनापति 'फ़िलिप्म' के पास जाके बहुतसी सेना ले के पीछा आगया । तथा इस बातका समाचार पाके सिकन्दरने भी पअनी सेनामें से बहुतमी सेना भेज दी । उसके साथ वह राजा बड़ी वीरतासे लड़के अन्त वीर गतिको प्राप्त हुआ। उस युद्ध में वहांके रहनेवाले पुष्करणे ब्राह्मणभी बहुत ही अधिकतासे मारे गये और जो कुछ शेष बचे वे मारवाड़ को सीमापर भाग आये जिनकी सन्तान लुवा आदि नगरो में वस गई। आलोरके अतिरिक्त सिन्धके अन्यान्य राजाओंने भी इसी प्रकार सिकन्दरसे युद्ध किया था जिससे क्रोधित होके सिकन्दरने वहां पर लाखों मनुः ज्य कतल करवाके मिन्ध देशको स्मशान भूमि बना दिया। उस समय सिन्ध देश मानो एकवारगी पुष्करणे ब्राह्मणों से भी शू. न्यसा हो गया था । उस आलोर नगरके युद्ध के समय जो पुष्करणे ब्राह्मण मारे गये उनमें अनेकों की स्त्रियें सती हो गई थीं जिनकी छत्रिय सं०१०१९ तक तो विद्यमान थीं। परन्तु उसी व.
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