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कहमोंके फैमल करने के लिये अदालतें रखने की आवश्यकता नहीं थी। केवल जघन्य अपगों (उपद्रवों)को जाँच के लिये कुछ पञ्च नियतथे । वे धन को भी संग्रह करनेकी अपेक्षा परोपकारी कार्यों में लगा देने को उत्तम मानतेथे। वह देश सोने और चाँदी की खानों से खाली नहीं था, परन्तु वे इन धातुओं को बहु मू. ल्य जानते हुये भी इनका व्यवहार शारीरिक शक्ति की उन्नतिके लिये बाधक होनसे इनको छूने भी नहीं थे। जिसके कारण स्वजाति में राज्य मान्य श्रामन्तों और साधारण लोगों में विवाह आदि के समय कुछ भी भेद प्रतीत नहीं होता था ।* इत्यादि
पुष्करणे ब्राह्मणों में जाति सम्बन्धी किसी भी प्रकार का मुकदमा कभी भी राज्यमें नहीं ले जाते हैं, किन्तु ये उसे अपनी जाति ही की पञ्चा यतसे निपटा लेते हैं।
*इस समय भी पुष्करणे ब्राह्मणों में श्रीमन्तो की कमी नहीं है और न सोने चाँदी के गहनों ही की कमी है । तथापि पुत्र वधूको विवाह हो मानेके पीछे तो चाहे सहस्रों ही का गहना भलेही पहनादें किन्तु विवाह के समय प्रथमही प्रथम तो प्राचीन रीत्यनुसार एक तो 'पहावीटी' नामक चाँदी की अंगूठी और एक 'फूलघूवर' नामक शिर में गूंथनेका चाँदीका फूलयेही दो छोटे से ग ने देते हैं, और जिनका मूल्य भी ।-) पांच आने से भी कम ही होता है । अतः ऐसी समृद्ध शालिनी होमेपर भी इस जाति में इतने कम मूल्यके केवल चाँदी के गहने जो प्राचीन सिन्धी भाषा के नामवाले है-देख कर क्या यह निश्चय महीं होता कि इनके पूर्वज सोना चाँदी आदि बहु मूल्य धातुओं को छूने भी नहीं थे । जिससे विवाह आदि में राज्यमान्य श्रीमन्तों और साधारण लोगो में कुछ भी भेद प्रतीत नहीं होता था ।
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