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१२५ में एक ऐसा भारी भूकम्प आया कि उस नगर्गको धराशायी बना देनेके साथ उन छत्रियों का भी नाम निशान मिटा दिया। किन्तु उन सतियों के गौरवको तो वह भूकम्पपी नहीं मिटा सका, अर्थात् यद्यपि उन मतियोंको हुए आज २२३६ वर्ष व्यतीत हो गये हैं किन्तु उनके नामके गीत पुष्करणों में उसी प्राचीन सिन्धी कहीं आजतक भाषामें गाये जाते हैं, जिनके सुननेसे उन सतियों को महिमाके साथ पुष्करणे ब्राह्मणोके माचीन निवासस्थान 'आलोर' पुरीका भी स्मरण हो आता है।
इस समय पुष्करणे ब्राह्मणोंका निवासस्थान (१) सिन्ध, (२) कच्छ, (३) गुजरात, (४) खानदेश, (५) पञ्जाब, (६) द्याट,
और (७) मारवाड़ है। इन्हीं देशोंके कारण इनके सात समुदाय बनगये हैं।
(१) कराची. हैदराबाद (सिन्ध), शिकारपुर, नगरठठा, सक्खर, टण्डा, नासरपुर, खैरपुर, रोहड़ा, स्याहबन्दर, सेहवण, आदिके सिन्धी; (२) माँडवी, लखपत, नारायण मरोवर, आशापुर, भुज, अंजार आदि के, तथा काठियावाड़ के पोरबन्दर, जामनगर, खम्मालिया आदि के, तथा पच्छु काँठा, सोरठ, गोलवाड़ आदिके ये सभी कच्छी; (३)पाटन, अहमदाबाद, बडौदा, और सूरत आदिके गुजराती; (४) बुरहानपुर, वीजापुर. जलगाँव धरणगाँव, और अमरावती आदिके खानदेशी; (५) लाहोर, मुलतान, मूनाबाद, बहावलपुर, वन, डेराइममाइलखाँ और डेरागाज़ीखाँ आदिके पञ्जाबी; (६) उमरकोट, मिडी, छा. छरा, और चेलार आदिके धाटी; और(७) जैसलमेर, विक्कूपुर, पोकरण, फलोधी, जोधपुर, पाली, नागौर, मेड़ता, बीकानेर, अजमेर, कृष्णगढ़, और जैपुर आदिके मारवाड़ी समुदायके हैं।
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