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ज्यमन्त्री, दीवान, किलेदार. फौज बख़शी, खज़ाञ्ची तथा परगनों के हाकिम आदि प्रत्येक ऊँचे पदपर रहते आये हैं । अतः पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति राज्य पुरोहित तथा राज्यगुरु आदि गिनी जानके उपरान्त राज्यके मुसाहिबों में भी गिनी जाती है। इतना ही नहीं किन्तु मुसाहिबों में भी विशेष रीति से राज्य के विश्वास पात्र और शुभचिन्तक मुसाहिबोंकी पंक्ति में गिनी जाती है।
षुष्करणे ब्राह्मण राज्य सन्मानित । पुष्करणे ब्राह्मण सदा से राजाओं के शुभ चिन्तक होनेसे जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, कृष्णगढ़, जयपुर, उदयपुर, बूंदी, कोटा, ईडर, रतलाम, झाबुआ, अमजरा, सीतामझ, नरसिंहगढ़, इन्दौर, बड़ौदा, भुज, पटियाला-इत्यादि रियासतों में इनका समयर पर उचित सत्कार तथा सन्मान होता आया है। अर्थात् कइयों से तो जागीर में गाँव, कइयोंसे पैर में पहिननेको सोना, कइयों से बैठने के लिये हाथी तथा पालखी आदि और कइयों से कड़ा, कण्ठी, मोती, दुपट्टा, दुशाला आदि धनादि पदार्थोके शिरोपाव मिले हैं। गज्य सन्मान पुष्करणे ब्राह्मणों को जातिमें अद्यावधि विद्यमान हैं जिससे इन की जाति के राजाओं की शुभ चिन्तक और सन्मानित होने का पूर्ण प्रमाण मि. लता है। पुष्करणे ब्राह्मणो के पास राज्य शासन पत्र
तथा ताम्रपत्र आदि। यदवंशी राजाओं से लेके अद्यावधि के राजा महाराजाओं के दिये हुये सैकड़ों ही राज्य शासन पत्र ( राज्य के परवाने)
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