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बड़ौदे आदिसे श्रोत्रिय विद्वान् दक्षिणीय ब्राह्मणोंको एकत्रकर बहुत सा धन व्यय करके अग्निहोत्र धारण करके पुष्करणे प्रा. मणोंके 'अग्निहोत्री' नामको सार्थक कर दिखाया। यद्यपि दो वर्ष पीछे उनकी स्त्रीका देहान्त हो गया और विना स्त्रीके अग्निहोत्र हो नहीं सकता इसलिये एक वार पीछा बन्द कर देना पड़ा था। परन्तु उन धर्म वीरने शास्त्रोंकी आज्ञानुसार फिर बहुत सा धन लगाके 'पुनराधान' करके फिर दूसरी वार अग्निहोत्र धारण किया सो आज तक उस कर्मका यथावत् पालन करते हैं।
अग्निहोत्र करने में इष्टिके दिन ब्रह्मा, अध्युर्य, होता, उ. द्गाता आदि अन्य श्रोतिय विद्वान् ब्राह्मणोंकी आवश्यकता रहती है अतः वे भी सभी कर्म करानेके लिये पुष्करणेही ब्रामण हैं। __ इसी प्रकार जोधपुर निवासी शाण्डिल्य गोत्री व यजुर्वेदी पुरोहित जातिके पुष्करणे ब्राह्मण 'श्रीमान् गौतमजी शर्मा ने भी वहीं के श्रोतिय श्रीमाली ब्राह्मणों को एकत्र करके अग्निहोत्र धारण किया था,सो शरीर वर्तमान रहने तक इस कर्मको यथावत करते रहे। ___ आशा की जाती है कि अन्यान्य भी पुष्करणे ब्राह्मण ईश्वर की प्रेरणासे इस महान् वैदिक धर्म कार्य में शीघ्र ही प्रवर्त होंगे।
पुष्करणे ब्राह्मणों में यज्ञ करने की प्रथा ।
इस जातिवाले परम्परासे श्रौत तथा स्मात धर्मानुसार अनेक प्रकारके यज्ञ करते आये हैं। उनमें 'विष्णु यज्ञ' नामक यज्ञ प्रधान है जिसके तीन भेद हैं । एक तो 'महा विष्णुयज्ञर, दूसरा 'विष्णु यज्ञ', और तीसरा 'बधु विष्णु यज्ञ' । इनमें महाविष्णु
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