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पुष्करणे ब्राह्मणों का आचार ।
देशों के भेदसे गौड़ और द्राविद ब्राह्मणोंकी पृथक सम्मदायें चली आती हैं। देश भेदसे इनके आचार विचार, खानपान आदि सम्पूर्ण व्यवहारों में भी भेद पड़ गया है । पुष्करणे ब्राह्मणोंकी जाति पञ्च द्राविड़ोंके अन्तर्गत गुर्जरोंकी एक शाखा होने से इनका भी आचार विचार, खानपान आदि द्राविड़ों ही के अनुकूल चला आता है । परन्तु बहुत समय तक निर्जल देश में निवास करने और वहांके राज्य कर्त्ताओं के पुरोहित, गुरु, मुसाहिब आदि होने से उनके साथ२ बहुत वर्षों तक आपत्कालमें जहांतहां भटकते फिरने आदि कारणों से तथा मुगलों के शासनकाल में जैसकमेर, जोधपुर आदि में उनका अधिकार हो जाने के समय उनके अत्याचारसे लोगों का प्राण बचानाही जब महा कठिन ही होगया था वैसे समय में ऐसा कठिन आचार निर्वाहहोता न देखके पुष्टिमार्ग ( वल्लभाचार्यजी की सम्प्रदाय) की मर्यादानुसार अनसखरी अर्थात् पक्का भोजन ( लड्डू पूरी आदि ) द्विजमात्र के हाथका खाने लग गये । किन्तु सखरी अर्थात् कच्चा भोजन (सीरा छपसी आदि) तो अपनी जातिवालोंके सिवाय अन्य किसी ब्राह्मण के भी हाथका बनाया हुआ अब भी नहीं खाते हैं । परन्तु कई पुष्करणे ब्राह्मण तो अब तक भी अपनी पूर्व मर्यादानुसार लड्डू पूरी आदि पक्का भोजन भी दूसरोंके हाथ का बनाया
* पुष्टि मार्गके आचार्य श्री गोसाँईजी महाराज भी द्राविड़ सम्प्रदाय मं के तेल ब्राह्मणोंकी एक शाखा में हैं और पुष्करणे ब्राह्मणोंने भी उसी द्राविड़ सम्प्रदाय के गुर्जर ब्राह्मणों की एक शाखा सिन्धी ब्राह्मण होने से पुष्टिमार्ग का आचार स्वीकार कर किया है।
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