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हुआ नहीं खाते हैं। इसीलिये सम्पूर्ण जातिको भोजन करानके समय तो-क्या कक्षा और क्या पका-सभी पकाम अपनी जा. तिवालों ही के हाथसे बनाया जाता है। इस प्रथाके लिये सम्पूर्ण पुष्करणे ब्राह्मणों को बालपन ही से भोजन बनाने की शिक्षा दी जाती है।
इसके उपरान्त विवाह आदिके समय जातिमें बाँटने के लिये जो लड्डू बनाये जाते हैं तो प्रथम आटेको केवल घृत में भून (सेक) लेते हैं । फिर गुड़को भी केवल घृतमें गला लेते हैं। पीछे उसमें उक्त भुना हुआ आटा मिलाके लड्डू बना लेते हैं । इनमें तेल वा पानी आदि कुछ भी पदार्थ न मिलनेसे ये लड्डु द्राविड़ सम्प्रदाय के अनुसार फलवत् ग्राह्य होते हैं । इससे भी पुष्करणे ब्राह्मणों का प्राचीन आचार द्राविड़ सम्प्रदायके अनुकूल होने का पूर्ण पता लगता है।
पुष्करणे ब्राह्मणों में संस्कार। धर्म शास्त्रों की आज्ञानुमार इस जातिमें भी गर्भाधानादि संस्कार यथावत् किये जाते हैं। जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नाम करण, अन्न माशन, चूडा कम, कर्णवेध उपनयन, वेदाध्ययन, समावर्तन, विवाह आदि संस्कार उचित काळमें करते हैं। इन में सोमन्तोन्नयन, जात कर्म, चूडा कर्म, यज्ञोपवीत, समावर्तन, विवाह, और अन्त्येष्टि के समय तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार बहुत अधिक द्रव्य लगाते हैं।
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