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घर पुरोहित 'पैलाजजी' की कन्या व लखूजी तथा वीरोजी की बहन 'वगड़ी' के साथ अपनी ओरसे धन लगाक करा दिया । तथा इनको अपना पाट व्यास (गुरु) बनाये सो आजतक जैसलमेर के राज्य में पाट व्यास उन्हीं की सन्तान वाले हैं ॥ देखो जैसलपरेकी तवारीखका पृष्ठ ४६ )
एक समय देवऋषिजी द्वारिकाकी यात्राको गये। वहां पर श्री भगवान्ने साधुका वेष धारण करके इनके पास आके कहा कि "तुम्हारे वंशमें ३२ पीढ़ीसे जो सुवर्ण सिद्धिा रसायन विद्या) चली आती है इसीलिये तुमारा वंश नहीं बढ़ता है अतः तुम इस विगको त्याग दे सो फिर तुम्हारा वंश बहुत बढ़ेगा" । यह कहकर इनकी जटामें जो रसायनकी शीशी थी वह लेके गौमतीजीमें फेंकके आप अदृश्य हो गये। तबसे देवऋषिजीने इस विद्याको छोड़ दी। तब इनके पुत्र हुये। उनमें से प्रथम पुत्र 'पोपाजी' की सन्तानतो जोधपुर आदिमें नाथावत,गिरिधरोत, चत्ताणी, जोधावत आदि है। दूसरे पुत्र 'जूठानी' की सन्तान बीकानेर आदिमें जूठगणी, लालाणी, कीकाणी आदि हैं; तीसरे पुत्र नउंजी' की संतान जैसलमेर आदिमें रणछोड़, हरखा, जसाणी, भोपत, श्रीधर, किसनाणी, डावांणी, गोविंद, सेऊबडसी आदि हैं और चोथे पुत्र गदाधरनीकी सन्तान कच्छ आदिमें हैं। भमघान्की आज्ञासे रसायन विद्याको छोड़ देने से इनका वंश इतना बढ़ा कि ४५० ही वर्षों में उन ४ पुत्रों की सन्तानके इस समय अनुमान ४००० घर होंगे। व्यास लल्लूजीके वंशधर होनेस देव ऋषिजी की संतानवाळे भी पुष्करणों में व्यास कहलाते हैं।
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