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कितना बड़ा देखें ! स्त्रीने अपने रसोई करने वाले एक नौकर के लड़के को दिखा के कहा कि इतना ही बड़ा और ऐसा ही स्वरूप वान् होना चाहिये । नाथाजीने कहा कि बहुत अच्छा । एक दिन स्त्रीने फिर पूछा कि क्या कोई लड़का मिला ? नाथाजीने कहा कि हां मिल गया । स्त्रीने पूछा कि वह कौनसा है ? नाथाजीने कहा कि जिस रसोई करने वाले के लड़के को तुमने पसन्द किया था वही तो है । इस बात को सुन कर स्त्री चुप हो गई । तब नाथाजीने कहा कि यह लड़का अपनी ही जाति का है, सुन्दर स्वरूप वाला भी है, गोत्र तथा कुल में भी अपन योग्य है, और तुमने भी इसी को पसन्द किया था । अर्थात् एक निर्धनता के अतिरिक्त और कोई हानि नहीं है । और इस हानि को तो तुम ही मिटा सकती हो । अर्थात् जितनी इच्छा हो उतना धन दे देना । ऐसा कह के अपनी कन्या की सगाई उसी अपनी रसोई बना ने वाले के लड़के से कर के उसे व्याह दी । और धनादि सम्पदा देके उसे भी धनाढ्य बना दिया ।
इसी प्रकार जैसलमेर के एक प्रतिष्ठित व श्रीमान् व्यास जीने भी अपनी ' वाली ' नाम की कन्या एक रसोई करने वाले अपने पुष्करणे नोकर को दे दी थी ।
ऐसे कइयोंने ही कन्याएं दी हैं । परन्तु उन पुरानी बातों को छोड़कर अभी सं० १९३१ में ही जोधपुर दरबार के मुसाहिब श्रीमान् चण्डवाणी जोशी हंसराजजीने भी अपने पुत्र आशकरण
की कन्या एक अत्यन्त साधारण स्थिति के लड़के को दे कर उसे भी श्रीमन्त बना दिया था
विचार का स्थल ह कि कहां तो ऐसे २ राज्य मान्य श्री
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