Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 136
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७ मन्तों की कन्याएं और कहां अत्यन्त ही साधारण स्थिति के लड़के ? अर्थात् कन्याएं देनेमें जैसी उदारता पुष्करणे ब्राह्मणों में है वैसी स्यात् ही किसी जाति में देखने वा सुननेमें आई होगी । यद्यपि अब ऐसी उदारता का कुछ २ लोप होना सम्भव होता जाता है, तथापि ऐसे उदारोंकी अब भी कमी नहीं है; और जो २ ऐसी उदारता दिखलाते हैं उन्हें उपरोक्त 'नाथाजी व्यास ' की उपमा देते हैं । पुष्करणे ब्राह्मणों में सगाई की शास्त्र मर्यादा । कन्या का दान करने में धर्म शास्त्रों में २ कर्म मुख्य माने हैं। प्रथम तो वाग्दान अर्थात् वचन से कन्या देना जिसे सगाई करना कहते हैं । और दूसरा कर्मदान अर्थात् कन्या का हथलेवा पात से जोड़ के प्रत्यक्ष कन्या देना जिसे विवाह करना कहते हैं । सगाई पूर्व काल में तो विवाह के समय से थोड़े ही समय पहिले करते थे और पञ्च द्राविड सम्प्रदाय वाले ब्राह्मण तो आज तक प्रायः ऐसे ही करते हैं । अतः पुष्करणे ब्राह्मण भी पञ्चद्राविड़ों में के गुर्जरों की एक शाखा होने से उसी प्राचीन रूढ़ि पर चलते हैं। किन्तु सगाई करने के पहिले जो कन्या देने का विचार स्थिर करते थे कि हमारी लड़की तुम्हारे लड़के को देंगे, काल पाके लोक रूढ़ि से उसी को सगाई पक्की हुई मानकर लड़कों के बाप लड़कि यों के लिये गहना कपड़ा आदि देने लग गये । परन्तु पुष्करणे ब्राह्मण कन्या देने का ऐसा विचार स्थिर कर लेने मात्र को शास्त्रानुसार सगाई होनी नहीं मानते इसी लिये विवाह से पहिले लड़की के लिये गहना कपड़ा आदि कुछ भी नहीं देते ऐसी अवस्था में यदि किसी का पाहले का विचार बदल जाये तो अपने 1 For Private And Personal Use Only

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