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१२१ गैर कौमों में जाता है । क्यों कि जो देने दिलानेका दस्तूर है, वह सब अपने ही लागती वालों में दिया जाता है, गैर कोम नाई ब्राह्मण भाट वगैरा को, जैसा कि दूसरी कौमों में दस्तूर है, नहीं दिया जाता और जो दिया भी जाता है तो बहुत कम । ___"सीसरे, बेटे वालेसे रोत या व्यौहार लेने का दस्तूर नहीं है। गरीबसे गरीब हो वह भी कुछ नहीं लेता। हां जो कोई गांवों में कुछ छुपे चोरी ले ले तो उसको अच्छा नहीं समझते। ___ "चौथे विरादरी वाले खुशी से हरेक अमीर गरीब के घर बराबर बुलाये से आ जाते हैं। और वहां जो खाना कम भी हो तो भी थोड़ा २ खाकर वाहवाह करके चले जावेंगे, और यह बात हरगिज़ नहीं ज़ाहिर होने देंगे कि खाना नहीं था या कम था।
__ "पांचवें जनेऊ, व्याह और उनके जीमन सब कौम केवास्ते हरसाल एक ही दिन और एक ही मुहूर्त पर मुकर्रर किये जाते हैं, कि जिससे गरीब आदमियों का निभाव हो जाता है।"
-*पुष्करणे ब्राह्मणों में सती होने की प्रथा । __इस देशमें द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्यों ) में सती होने की प्रथा परम्परासे चली आती है । तदनुसार पुष्करणे ब्रा. मणों में भी सतियें होती आई हैं । जैसे
जोधपुर के चण्डवाणी जोशियों की एक कन्या बोहगजातिके एक लड़केको व्याही थी। एक दिन रात्रिके समय वह कन्या ममुराल में रहने के लिए गई। किन्तु उसका पति (लड़का) अपने सोनेके स्थानका द्वार भीतरसे बन्द करके पहिले हीसे सो रहा था, इसलिये लज्जाके मारी पतिसे द्वार न खुला के रातभर कमरे के
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