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पुष्करणे ब्राह्मणों में वानप्रस्थ आश्रमी ।
इस जाति में भी आश्रम धर्मानुसार बानप्रस्थ आश्रम का भी पालन करते आये हैं। जैसे जोधपुरके चण्डवाणी जोशी वृत्ति नारायणजी, पुरोहित परशु रामजी, बलदेव ऋषि, बोहरा अण. तरामजी आदि बड़े तपस्वी तेजस्वी व वचनसिद्ध महात्मा हो गये हैं। तथा अब भी पुरोहित रूपरामजी आदि कई महाशय उक्त आश्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं।
पुष्करणे ब्राह्मणोमें संन्यासी। वानप्रस्थ के उपरान्त कई महाशय संन्यास भी धारण कर के परम पदको प्राप्त होते हैं। जैसे मत्तड़ जातिके एक पुष्करणे ब्राह्मण संन्यास धारण करने पर 'मुखानन्द' नाम से प्रसिद्ध हुये थे। उन्होंने सदेही कैलास गमन करने के लिये 'केदार कल्प' की साधना किंई तो उनका शरीर ऐसा दृढ़ हो गया कि उसे अनि भी नहीं जला सकती थी। फिर वे वद्रिकाश्रम हो के हिमालय की ओर आगे बढ़ चले गये। जोधपुर से कई लोग जो उनके साथ गयेथे उन्हें वे बहुत दूर तक वरफ पर जाते हुये दृष्टि भाये । फिर पर्वत की ओटमें आ जाने से नहीं दीखे । उन मुखानन्द स्वामी जी की वागीची तथा कुआ आदि आश्रम अब तक जोधपुर में पुष्करणे ब्राह्मणों की स्वाधीनता में बहुत वर्षों से चला आता है।
इसी मकार जोधपुर के कावजी नामक एक चचाणी व्यासने बड़ौद में द्राविड़ सम्पदाय के एक प्रतिष्ठित संन्यासी जी से संन्यास धारण किया था । तब फिर वे 'अचला नन्दजी' नाम
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