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१०७ बीकानेर आदिकी रियासतोंमें पुष्टिमार्गके धर्मका प्रथम ही प्रथम प्रचार हुआ। फिर जैसलमेर के तो महाराजा मूलराजनी व जो. धपुरके महाराजा विजयसिंहजी और बीकानेरके महाराजा मूरतसिंहजीने इस धर्मका बहुतही अधिक प्रचार किया था
कच्छ तथा सिन्ध देशके भाटिये महाजनोंमें भी जो पुष्टिमार्ग प्रचार हुआ है उसके प्रारम्भ करानेवाले मुख्य पुष्करणे ही ब्राह्मण हैं। क्यों कि भाटिये महाजनोंके वंशपरम्पराके गुरु पुष्करणे ब्राह्मणोंने जिस धर्मको स्वीकार कर लिया वोफिर उनके शिष्य भाटिये महाजन क्यों नहीं करते अर्थात् अपने गुरुओंका अनुकरण इन्होंने भी कर लिया।
अतः एव पुष्टिमार्गकी सम्प्रदाय में पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति 'लाल फौज (वल्लभ कुल की अङ्ग रक्षक सेना)' समझी जाती है।
पुष्करणे ब्राह्मणों की धर्म पर दृढ़ता।
पुष्करणे ब्राह्मणों की प्राचीनता के प्रमाण सं०९९२ तथा९ ९५ में टंकशाली-व्यास लल्लूजीका लख भाज करने आदिका वृत्तान्त लिखाहै। उनके वंशम २३ पोढ़ी पोछे व्यास राम ऋषिजी हुये थे। वे आयुर्वेद (वैद्यक ) विद्य में अद्वितीय थे। यह विधा इनके घरमें वंशपरंपरासे चली आती थी। इसी विद्याके प्रभावसे इनके पूर्वजोंको बादशाहों से कुछ जागीर भी मिल थी । एक समय पादशाहके अब व्रण (अदीठ फोड़ा) होगयाषा, जिसका इबाज इनोंने बहुत सावधानीसे करके पाराम कर दिया । इस जीवदानके पद पादशाहने अपनी कन्या इनके पुत्र देवी
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