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१०५ पुष्करणे ब्राह्मण ग्रन्थ कर्ता। पुष्करणे ब्राह्मण सदासे विद्वान् होते आये हैं। इस समय भी सिन्ध, कच्छ, गुजरात, मारवाड़, आदिमें कई अच्छे २ विद्वान् विद्यमान हैं। इनके निर्माण किये हुये ग्रन्थोंको छोड़कर इनके पूर्वजों ही के निर्माण किये हुये ग्रन्थों का वर्णन करें तो भी एक बड़ी पुस्तक बन जावे। अत: उन सबका निर्णय पुष्करणोत्पत्ति नामक पुस्तक में लिखेंगे जिससे पुष्करणे ब्राह्मणों के धर्म शास्त्र, व्याकरण, ज्योतिष, वैद्यक, तथा मन्त्र शास्त्र आदि के पूर्ण ज्ञाता होने का परिचय मिलेगा।
जिस प्रकार ये संस्कृत के कवि होते आये वैसे भाषाके भी अच्छे २ कवि होते आये हैं। एक सपय जोधपुर में विद्वान् कवियोंकी एक सभा एकत्र हुई तो वहां पर अधिकांश चारण तथा भाट ही अधिक थे। उस सभा में 'हरलालजी' नामक एक पुरोहित जातिके पुष्करणे ब्राह्मण, जो कवि थे, आ गये। उनको देख कर उन चारण भाटोंमें से कोई बोल उठा कि ब्राह्मण कविता करनी क्या जानें? इसपर उन हरलालजीने तत्काल एक कवित्त कहा था वह आगे लिखताहूं जिससे इनके भाषाके कवि होनेका भी परिचय मिलेगा। आदि कवि विधि वेद रचे
पुनि व्यास पुराण बनाय के दीनी। सो सुन शुक्र रचे सब काव्य
तुलसी अरु सूर सुनाय के दीनी ॥ लाल भने कवि के सब भेद
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