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१०३ रघुनाथजीने, १ जगन्नाथजीने, और ? पोकरजीने किये थे। बीकानेरके राज्यमें उनके वंशवालोंका वैसाही सत्कार बना हुआ है और राज्यसे मिले हुये ३ गाँव (१) थावरिया, (२) खातीवास और (३) कुँतासरिया इनके आधीन आजतक विद्यमान हैं।
. पुष्करणे ब्राह्मणों में सिद्ध पुरुष ।
ब्रह्मोजी नामक एक आचारज (आचार्य) जातिके पुष्करणे ब्राह्मणने सिन्ध देशमें सिन्धु नदकी तटपर गायत्री मन्त्रका पुरश्चरण ( २४ लाखका जप ) प्रारम्भ कियाथा । उस समय 'एक वृद्ध कुम्भकार अपनी स्त्री तथा एक कुंवारी कन्या सहित इनकी टहल करनेको आ रहा। फिर वे स्त्री पुरुष तो तीर्थ यात्रा को जानेकी बात कहकर वहांसे चले गये, और लौटके पीछे आने तक अपनी कन्याको इन्हींके पास छोड़ गये । वह कन्या इनकी टहल करती रही। इसकी सुन्दरता देखकर एक दिन वहाँके मुसलमान नव्याबने इसे लेनी चाही। यह समाचार सुनकर ब्रह्मोजीको बड़ा क्रोध आया किन्तु उस दुष्टके आगे कुछ वश नहीं चलता देख बहुत घबराये। परन्तु जिस समय नवाब इस कन्याको लेने के लिये ब्रह्मोजीकी झोपड़ीके भीतर आया तो वही कन्या सिंहपर चढ़ी हुई साक्षात् अष्टभुजा देवी नज़र आई। इससे घबराकर ब्रह्मोजी से क्षमा प्रार्थनाकी और आगेसे ऐसा अनाचार नहीं करनेका मण करके अपनी जान बचाई। वह कन्या वास्तवमें साक्षात् गायत्रीही थी जो ब्रह्मोजीकी तपस्यासे प्रसन्न होके इस रूपसे स्वयं इनकी टहल करनेको आ के रह गई थी। फिर वह कन्या अमोजीको
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