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गायत्री का जप सिद्ध होनेका वर देके वहाँपर अदृश्य हो गई । फिर इस कन्याके वरदान से ब्रह्मोजी बड़े सिद्ध पुरुष हुये और उन सिद्धियों द्वारा जगत्काभी बड़ा उपकार करते रहे ।
इसी प्रकार चोहटिया जोशी 'वलीरामजी' सिन्ध देश के रोड़ी नामक ग्राममें रहते थे । इनके भी साक्षात् गायत्री अरसपरस थी। एक समय लोगों के बहकानेसे कितनेक मुसलमान रात्रि के समय उनकी सोते हुयेकी चार पाई उठाके सिन्धु नदीमें डुबोने को ले गये । परन्तु जब चारपाईको डुबोनी चाही तो वह तो उनके कन्धों ही पर चिपक रही । इस से घबराकर उन मुसलमानोंने क्षमा माँगी । तब उन्होंने कहाकि चार पाई तो पीछी के जाके रख दो और सदा के लिये हिन्दुओंका चिह्न धारण करो तब छोड़ । मुस कमान इस बातको स्वीकार करके 'चोटी' रखाने लगे; सो उनकी सन्मानभी आजतक बळीरामके नामकी चोटी रखवाते हैं। और उस रोड़ी ग्राममें वलीरामजीकी छत्री है जहां प्रतिवर्ष एक मेला भरता है । उस समय हिन्दू मुसलमान सभी उनकी ज़ियारत करनेको जाते हैं ।
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इसी प्रकार सिन्ध आदि देशों के अतिरिक्त जैसलमेर, पोकरण, फलोधी, जोधपुर, पाली, नागौर मेड़ता, बीकानेर, कुष्णगढ़, आदिमें भी कई पुष्करणे ब्राह्मण बड़े नामी सिद्ध हुये हैं। यहांतक कि इस समय भी ऐसे कई सिद्ध पुरुष इस जातिमें विध मान हैं । इनकी सिद्धियोंका अधिक वृचान्त 'पुष्करणोत्पत्ति' नामक पुस्क कमें लिखेंगे ।
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