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सेवग ने अध वीच में छोनी ।
ब्राह्मण के मुख की कविता
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कछु भाट लई कछु चारण लोनी ॥
पुष्करणे ब्राह्मणों का धम
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यह जाति सदासे श्रौत (वेद) और स्मार्त ( स्मृति ) धर्म की अनुयायिनी है । और यह स्वयं भी धर्मकी पुष्टि करनेवाली होने ही से तो इसका नाम भी 'पुष्टिकरणा' (पुष्करणा) हुआ है । मारवाड़ देश में 'पुष्टि मार्ग (वल्लभ कुळकी सम्प्रदाय )' के धर्मका प्रचार हुआ है तबसे पुष्करणोंने भी इस सम्प्रदायको स्वीकार की है । इस देशमें पुष्टिमार्गका प्रचार होनेका वृत्तान्तयों है ।
जोधपुर के महाराजा अभयसिंहजी के गुरु नाथावत व्यास माणिकचन्दजी व जैसलमेर के महाराजा अमरसिंहजी के पाट व्यास (गुरु) मधुवनजीने प्रथम इस सम्प्रदाय के धर्मको स्वीकार किया और देश भर में प्रचार करानेके लिये अपने २ महाराज..ओंको भी इस धर्मको स्वीकार करनेका बहुत आग्रह किया। उ महाराजाओंने कहा कि पुष्टिमार्गके आचार्य गोसांईजी महाराज को यदि हम गुरु बना लेंगे तो फिर हमारे वंशवालेभी इन्हींके वंशवालोंको गुरु मानने लग जायेंगे जिससे आपके वंशवालोंका फिर उतना गुरु भाव नहीं रहेगा। परन्तु धर्मकी पुष्टि चाहनेवाले उन महाशयोंने अपने वंशवालों का गुरुभाव कम हो जानेकी कुछ भी परवाह न करके अपने महाराजाओंको गोसाईजी महाराजके शिष्य बना दिये । इसी प्रकार बीकानेर के महाराजा भी इन के शिष्य पुष्करणों हीके अनुरोधसे हुये । तबसे जैसलमेर, जोधपुर,
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