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तथा उपनयनादिः संस्कारों के समयमें, कन्या आदि के विवाह समयमें, और मातापिता आदिके देहान्त हो जाने के प: श्वात्. अपनी सामर्थ्यके अनुसार स्वजातिके ब्राह्मणों को अ. वश्य भोजन कराते हैं और सम्पूर्ण जाति भरको भोजन करानेके समय प्रत्येक ब्राह्मणको ।)।), १) १), २)२) तक दक्षिणा भी देते हैं । अतः एक वार जाति भोजन कराने में बड़े नगरों में तो ५०००) ५०००) वा १००००) १००००) तक रुपये लग जाते हैं। ऐसे जाति भोजन एक वर्ष में कई वार हो जाते हैं जिनसे पाठक अनुमान कर सकते हैं कि आजतक इस कार्यके लिये पुकरणे ब्राह्मणोंकी जातिने लाखों ही नहीं वरन करोड़ों रुपये व्यय कर दिये होंगे और आगेको भी ऐसे ही व्यय करती जाने ही में वह अपना गौरव समाती है। किन्तु यदि इसी प्रकार जात्युपकारी अन्यान्य कार्यों में द्रव्यादि से सहायक बने तो क्या कम उत्तम होगा?
पुष्करणे ब्राह्मणों में स्वजाति में
परस्पर सहानुभूति । इसी प्रकार दुर्भिक्ष आदि के कष्टके समय भी वे एक दूसरे से सहानुभूति रखते हैं।
एक समय सं. १६८० के लगभग मारवाड़ में बड़ा भारी दुर्भिक्ष (अकाळ) पड़ गया। उस समय बहुतसे पुष्करणे ब्रामण देशको त्यागकर विदेश जाने लगे तो जोधपुरके महाराजा शूर.
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