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ह्मणों को ७ दिन भोजन कराके पूर्णाहुतिके पश्चात् प्रत्येक ब्रामणको ४) ४) रुपये दक्षिणा देके विदा किये। या कर्तागण जोधपुरके महाराज श्रीमान् तख्तसिंहजीके गुरू व मुसाहिब आदि थे, इसलिये जोधपुर दरवारसे सर्व प्रकारके अन्यान्य प्रबन्ध कर दिये गये थे । तथा धान्यादिका भावभी उस समय बहुतही मन्दा . था। तोभी अनुपान१,००,०००) रुपये उनके घरसे व्यय हुये थे। इस समयमें तो वैसा यज्ञ १० लाख रुपये लगाने परभी होना कठिन है। अब भी ऐसे धनाढयों की तो कमी नहीं है किन्तु वैसा प्रबन्ध होना महा कठिन है।
इस यज्ञके पश्चात्भी कई वर्षों तक उस यज्ञके स्मरणार्थ उसी यज्ञ शाला में प्रतिवर्ष, जोधपुर में सम्पूर्ण पुष्करणे ब्राह्मणों की जातिभर को भोजन कराया जाता था, अर्थात् उपरोक्त प्रकारके यज्ञों में तथा जाति भोजन में इनके घरसे लाखों ही रुपये व्यय हुये हैं । ऐसे धार्मिमक परोपकारी महानुभावों के वंश भूषण श्रीमान् जोशीजी आशकरणजी साहिब इस समय जोधपुर दरबार की कौन्सिलकी शोभा बढ़ा रहे हैं । ईश्वर इन्हें चिरायु करें।
पुष्करणे ब्राह्मणों में ब्रह्मभोज
करने का आग्रह। मन्वादि धर्म शास्त्रों में ब्राह्मण भोजन करानेका बहुत आग्रह किया गया है। और ब्राह्मणों में भी स्वजातिके ब्राह्मणों को भोजन करानेका विशेष फळ लिखा है। इसी लिये पुष्करणे ब्राह्मणों में भी जाति भोजन करानेकी प्राचीन प्रथा आजतक चली आती है। अर्थात् पुत्र आदिके जन्म
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