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यथा:
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पुष्करणे ब्राह्मणोंके दान नहीं लेनेका कारण ।
मन्वादि धर्म शास्त्रों में ब्राह्मणों के लिये ६ कर्म माने हैं ।
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अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं तथा । दानं प्रतिग्रहं चैव ब्राह्मणानामकल्पयत्
मनु० अ० १ श्लो० ८८ विद्या पढ़ना, यज्ञ करना, और दान देना ये ३ कर्म तो परमार्थके लिये; और विद्या पढ़ाना, यज्ञ कराना, और दान लेना ये ३ कर्म जीविका के लिये : - इस प्रकार ये ६ कर्म ब्राह्मणों के हैं। प्रतिग्रहसमर्थोऽपि प्रसङ्गं तत्र वर्जयेत् ॥ प्रतिग्रहेण ह्यस्याशु ब्राह्मं तेजः प्रशाम्यति ॥ मनु० अ० ४ श्लो० १८६ प्रतिग्रह ( दान) लेना यद्यपि है तो ब्राह्मणों ही के कर्मों में, तथापि बिना सामर्थ्य के तो लेने की आज्ञा ही नहीं है । किन्तु सामर्थ्यवान्को भी अपने ब्रह्म तेजकी रक्षा के लिये इससे अपनेको बचाना लिखा है । यहां तक कि आपत्काळके बिना तो ऐसे वैसे ( पापवृत्ति से जोविका करनेवाले) मनुष्यका तौ भोजन भी लेने का निषेध है । यथा:
दुष्कृतं हि मनुष्याणामन्नमाश्रित्य तिष्ठति । यो यस्यान्नं समभाति स तस्याश्नाति किल्विषम् ॥ अङ्गिरास्मृति । मनुष्यों के किये हुये पापकर्मों का फल उन के अन्नमें रहता है । अतः उनके दिये हुये अन्नका भोजन करनेवाले भी उनके
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