________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिह्वा दग्धं परान्नेन हस्तदग्धं प्रतिग्रहात । मनो दग्धं परस्त्रीणां मन्त्रसिद्धिः कथं भवेत् ॥
नित्यपति पराया अन्न खानेसे जिह्वा दग्ध हो जाती है, स. दैव ही प्रतिग्रह (दान) लेनेसे हाथ दग्ध हो जाता है और पर स्त्रीकी इच्छा करने से मन दग्ध हो जाता है । अतः ऐसा करनेवाले ब्राह्मण को मन्त्रकी सिद्धि प्राप्त नहीं होती अर्थात ब्रह्म तेज नहीं बढ़ता है जिसके कारण उसका दिया हुआ श्राप बा आशिष् फलीभूत नहीं होती। किन्तु ब्राह्मणों का गौरव ऐसी सामर्थ्य होनेही में है।
इसी शुद्धता के कारण पुष्करणे ब्राह्मणों में भी ब्रह्म तेज बना हुआ है, जिसका प्रभाव कई वार देखने में आया है। इसका पूर्ण वृत्तान्त पुष्करणोत्पत्ति नामक पुस्तक में लिखेंगे ।
पुष्करणे ब्राह्मणोंमें दान लेने की सामर्थ्य ।
बहुधा पुष्करणे ब्राह्मण दान ( प्रतिग्रह ) नहीं लेते हैं, परन्तु आवश्यकता पड़ जानेपर तो कठिनसे कठिन दान (प्रतिग्रह) लेनेकी सामर्थ्य भी रखते हैं। जैसे:
जयपुरके महाराजाधिराज श्रीमान् सवाई जयसिंहजीने सं० १७८९ में 'अश्वमेध यज्ञ कियाथा । उसके अन्तमें दान करने के लिये अन्न, वस्त्र, धातु आदि बहुतसे पदार्थों के ढेर लगाके बीच में एक 'लोहेका पुतला' बनाके रख दिया । इस यज्ञके समय बहुतसे ब्राह्मण एकत्र हुयेथे किन्तु उस दानके लेनेका साहस कि
For Private And Personal Use Only