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सिंहजीके गुरु व मुसाहिब व्यास नायाजीने अपने पाससे धान्य देकर लोगों को जोधपुर ही में बसा लिये ये । उस समय की यह एक कहावत आजतक लोग कहते आये हैं कि:
न्यात न्यात में होतो नाथो।
तो काहे को लोग मालवे जातो? ॥ इसी प्रकार सं. १८६९ में भी मारवाड़ में बड़ा भारी दुभिक्ष पड़ा था। उस समय सिन्धकी ओर को जानेवाले पुष्करणे ब्राह्मणों को तो जैसलमेर के व्यास शूरदासजी व शिवदासजीने और मालवेकी ओर जाने वालोंको जोधपुरके चण्डवाणी जोशी श्री कृष्णजीने पीछा संवत् होने तक अपने यहां भोजन करने का निमन्त्रण सम्पूर्ण न्यात को देकर भोजनादिका उचित प्रबन्ध करके अपनी २ ओरसे वृहत् भोजन शालायें खाल दीं। उनमें हर कोई पुष्करणा ब्राह्मण भोजन कर सकता था। ऐसे करने से लोगोंका दुर्भिक्ष का कष्ट दूर हो गया।
पुष्करणे ब्राह्मण सदासे मारवाड़ के छोटे बड़े प्रायः सभी गाँवों में राज्यकी ओरसे हवालदार आदि अथवा बोहरों आदि की ओरसे उनकी रकम बमूल करनेके लिये रहते हैं। यदि कोई पुष्करणा ब्राह्मण मार्ग चलता हुआ भी उनके गाँवमें होके निकल जावे तो उनको वहां पर ठहरा के एक टंक तो भोजन कराये विना कदापि आगे नहीं जाने देते । जैसी परस्पर सहानुभूति इस बात की पुष्करणे ब्राह्मणों में देखी जाती है वैसी स्यात् ही किसी अन्य जातीमें होगी।
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