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अवटङ्क, खाँप, नख वा जाति भी कहते हैं। इनमें किस जातिवालों का कौनसा गोत्र, प्रवर, वेद, शाखा, सूत्र, तथा भैरव, गणेश, कुलदेवी आदि है, उसका निर्णय 'पुष्करणोत्पचि' नामक पुस्तक में विस्तार पूर्वक करेंगे ।
पुष्करणे ब्राह्मण वेद पाठी । जिन सिन्धी ब्राह्मणोंसे यह जाति बनी है उनमें पूर्वोक्त गोत्रोंवाले कई तो ऋग्वेदी, कई यजुर्वेदी, कई सामवेदी, और कई अथर्ववेदी थे । परन्तु इस समय ऋग् और अथर्व की अपेक्षा यजुर् और सामवेदी ब्राह्मण ही पुष्करणों में अधिक हैं । इसलिये पुष्करणे ब्राह्मणों की जातिमें इन्हीं दो वेदोंका प्रचार है।
पुष्करणे ब्राह्मणों में अग्निहोत्री। पहिले समय में कई पुष्करणे ब्राह्मण अग्निहोत्री थे जिनके बनाये हुये यज्ञ मण्डप-यज्ञशालायें तथा अग्निहोत्रकं कुण्डों के चिह्न लुवा आदि नगरों में तथा जोधपुरके नाथावत व्यासों के यहां अबतक विद्यमान हैं जो पुष्करणे ब्राह्मणों के पूर्वजों के अनिहोत्री होनेका स्मरण कराते हैं। ___ यद्यपि मुगल बादशाहों के अत्याचारके समय इसका प्रचार प्रायः नहीं रहा था किन्तु अब अंग्रेजोंके इस शान्तिमय शासन कालमें इसका पीछा प्रचार हुआ है। इनमें प्रथम यश के भागी जोधपुर निवासी पाराशर गोत्री व सामवेदी हर्ष जातिके पुष्करणे ब्राह्मण 'श्रीमान् शिवराजजी शर्मा' हुये हैं । इन्होंने सं० १९५५ में
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