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मिलने से लाचारन वे ब्राह्मण स्वयं ही खेती करने लग गये । किन्तु ऐसे तो सभी देशों के और सभी जातिके ब्राह्मणोंमें खेती करने वाले विद्यमान मिळेंगे । यहाँ तक कि इस कलियुग में ब्राह्मणों के लिये खेती करने की आज्ञापी ' पाराशर स्मृति' में है । इसके उपरान्त समस्त पुष्करणों के घर २०००० होंगे, उनमें खेती करने वाले घर १००० । ५०० भी कठिनता से मिलेंगे । तो इतने से इने गिने लोगों के खेती करने और खेती के लिये पशु रखने मात्रही से पुष्करणे ब्राह्मणों की समग्र जाति भर ही की जीविका खेती करने और पशु पालनें से लिख देने में तो टाड साहवने स्वयं ही अपनी अनभिज्ञता सिद्ध करते हुये अपनी भूल भ्रम वा किसी प्रकारका धोखा खा लेने का भी क्या पूर्ण परिचय नहीं दिया है ?
यहां पर यदि कोई महान् सूक्ष्म बुद्धि वाला ऐसी शंका करे कि टाट साहबने जिस समय पुस्तक लिखी थी उस समय तो इनकी जीविका इसी प्रकार होगी परन्तु पीछे से इन्होंने बदल ली होगी । तो उन्हें यह विचार कर लेना चाहिये कि प्रथम तोटाड साहबको हुये कोई २०० । ४०० वर्ष व्यतीत नहीं हो गये हैं किन्तु केवल ७४ ही वर्ष हुये हैं । तो क्या इतनेही से वर्षों में इतना परिवर्तन हो गया ? दूसरे यदि हो भी गया तो फिर जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, कृष्णगढ़, जयपुर आदि के राजाओं के इतिहासों में सैकड़ों ही वर्ष पहिले से उनके पुरोहित, गुरु, मुसाहिब आदि होने के प्रमाण कैसे मिलते हैं ? तीसरे टाड साहब को प्रत्यक्ष देखनेवाले भी अब भी कोई २ मारवाडमें मिल सकते हैं; और उस समय के जन्मे हुये तो बहुत ही अधिक विद्यमान हैं । तो क्या उनमें से भी कोई टाट साहबके उक्त कथनकी पुष्टि करता
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