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उमटवाड़ी आदिमें, पुरोहित हरिदासजी उद्धवदासजीकी पञ्जाब आदिमें, और इस ग्रन्थ कर्ताके पूर्वज खेतसीदासजी अटलदासजीकी पाली आदि में थीं। इनके अतिरिक्त और भी अनेकोंकी दूकानें थीं और अब भी कई स्थानों में विद्यमान हैं। सहेका रोज़गार
इस समय देशमें सट्टेका रोज़गार चल पड़ा है तो पुष्करणे ब्राह्मण इसका भी सहस्रों तथा लाखों ही रुपयोंकी हारजीतका रोज़गार करते हैं। उनमें फलोधी वाले मुख्यं है। दलालो___ बम्बई, कलकत्ता, हैदराबाद दक्षिण, इन्दौर, खाँम गाँव, और कलकत्ता आदि में हुण्डी, प्रामिसरी नोट, चाँदी आदिकी दलाली करने वालों में भी प्रायः पुष्करणे ब्राह्मण अधिक हैं। महाजन आदिको नौकरी
जो लोग घरू रोज़गार नहीं करते हैं, और जिगमे राज्यकी नौकरी करनी भीबन नहीं पड़ती है, तथा जो पुरोहिताई करनी भी नहीं चाहते वे लोग महाजनोंके यहां मुनीमगीरी (मुखतियारी), कीलीदारी (रोकड़ का काम), तथा वही खाता लिखने आदिकी नौकरी करते हैं और इन कामों में पुष्करणे ब्राह्मण बड़े होशियार व विश्वासपात्र होने से महाजन भी इन्हें प्रसन्नता पूर्वक र. खते हैं । इसके उपरान्त ये रसोई बनाने में भी बड़े चतुर होनेसेबड़े २ सेठ साहूकारों तथा राज्य मुत्सदियों के अतिरिक्त राजा ओंके यहां भी कोई २ लोग रमोईका भी काम करते हैं । इम समय मारवाड़ की रेल में भी अधिकांश पुष्करणे ही राह्मण नौकरी करते हैं।
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