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उपाध्याय जातिके एक पुष्करणे ब्राह्मणकों रुपये दे के पूने भेजा । किन्तु उसने वहां जाके देखा कि अंग्रेज़ों के साथ उनका युद्ध हो रहा है । अतः वह बुद्धिमान् उस ममय रुपये देने उचित न जान कर युद्धका अन्तिम फलाफल ( अख़ीर नतीजा) देखने तक वहां पर ठहर गया; और अन्तमें जब मरहट्टों की हार हो गई तब रुपये बचाके पोछा लौट आया। इससे प्रसन्न होके महाराजने उन्से एक ग्राम पट्टे में लिख दिया था।
पुष्करणे ब्राह्मण राज्य मुसाहिब । यदुवंशियों से लेके राठौड़ वंशके राजा महाराजाओं के इ. तिहासों स तथा पुष्करणे ब्राह्मणों के वृत्तान्तों से स्पष्ट सिद्ध होता है कि पुष्करणे ब्राह्मण पूर्वोक्त राजाओंके यहां राज्य पु. रोहित, राज्यगुरु आदि ब्राह्मणों के करने योग्य ही कार्य करते आये हैं। हां राज्य कार्य में भी बड़े दक्ष ( चतुर) होनेसे समय २ पर राज्याधिकार के भी कार्य करके अपने राजाओं को हर. एक प्रकार से सहायता पहुँचाते थे । यद्यपि सदैव ही राज्यका अधिकार भोगने पर ब्रह्मकर्मकी शिथिलता हो जाने के भयसे बहुधा राज्याधिकार के कार्यों से अपने को बचाते थे परन्तु तथापि रात दिन राजाओं के संसर्गसे राज्याधिकारके कार्य करने में भी प्रवर्त्त हो गये । यहां तक कि अब तो मारवाड़ में राज्यका ऐसा कोई विरला ही विभाग (महकमा) होगा कि जिस में पुष्करणे ब्राह्मण न हों, और ऐसे कोई विरले ही पुष्करणे ब्रा. ह्मण होंगे कि जिनका कुछ भी सम्बन्ध राज्यसे न हो । अर्थात राज्य के साधारण से साधारण ओहदेसे लेके आला दर्जेके रा.
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