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के कर्ता मान सकते हैं ? कभी नहीं। क्यों कि उक्त शिलालेखों में मेड़तेके राजा नागभटके पिताका नाम नरभट लिखा है किन्तु पुष्कर खुदनेवाले मण्डोर के राजा नाहरराव के पिता प्रेम. पालथे जिसके प्रमाणका एक पूर्वोक्त दोहा सर्वत्रही प्रसिद्ध है कि:
संवत् बारै बारोत्तरै पुष्कर बाँध्यो धाम । पेमपाल रा नाहरराव 3 कीयो निश्चल नाम॥
इससे स्पष्ट है कि पुष्कर खुदवाने वाला नाहरराव मेड़तेके राजा नरभटका पुत्र नहीं किन्तु मण्डोर के राजा प्रेमपालका पुत्र था, जिसने सं० १२१२ में पुष्करजीका तालाब खुदवाया था।
जब कि शिलालेख ( कीर्ति स्तम्भ ) खुदवाने का मुख्य उ. देशही अपने पूर्वजोंकी कीर्ति स्थापित करनेका है और इसीलिये उपरोक्त शिला लेखों में भी प्रत्येक राजाके नामके साथ २ साधारण इतिहास भी लिखे विना नहीं रहे तो क्या समस्त तीयों के गुरु पुष्करको खुदवाने जैसै महान् कीर्तिवाले इतिहास को क्या कोई शिला लेखमें लिखना भूल गये ? नहीं नहीं कभी नहीं भूले । तभी तो कहते हैं कि नागभट तो क्या इन शिला लेखों में के किसी अन्य राजाने भी पुष्कर नहीं खुदवाया था इसीलिये इन शिलालेखोंमें पुष्करका कुछभी वृत्तान्त नहीं है ।
अतः पुष्कर खुदवानेवाले नाहरराव पड़िहार इन शिलाले. खोंके खुदवानेवाले पड़िहार राजा बाहुक तथा कक्कुक से कई पीढ़ी पोछे हुयेथे-जिन्होंने सं० १२१२ में पुष्कर खुदवाया था जिसके कई प्रमाण पहिले लिख चुका हूं।
फिरभी यदि कोई 'चालकी खाल' उतारनेवाले हठात् ही मेड़तेके राजा नरभटके पुत्र नागभटही को पुष्कर खुदवाने वाला
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