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माने हुये पुष्करणे ही ब्राह्मणों को गुरु भावसे मान्यकर सत्कार करते आये हैं। _अर्थात् भाटी और राठौड़ राजपूतों के जहां २ राज्य और छोटे बड़े ठिकाने हैं वहां २ पुष्करणे ब्राह्मगों का पूज्य भावसे मान्यकर सत्कार होता आया है।
राठौड़ों के राजगुरु सेवड़ पुरोहितोंकी पुरोहिताई__ जोधपुर दरबार के राजगुरु जो सेवड़ जातिके पुरोहित हैं उन्होंने भी कनोजसे मारवाड़ में आनेपर अपने लिये उपाध्याय जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित बनाये थे। इन सेबड़ पुरोहितों की एक शाख दमाणी' है वे जहां २ राठौड़ राजपूतों का राज्य तथा छोटे बड़े ठिकाने हैं वहाँ २ रहते हैं। इनकी संख्या अनुमान १००००० की होगी। इनमें 'तिंवरी' के पुरोहितजी पाटवी होनेसे जोधपुर दरबारको पुरोहिताई करते हैं। उनके भी पुरोहित ओझा जातिके पुष्करणे ही ब्राह्मण हैं।
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पुष्करणे ब्राह्मणों की अन्यान्य जातियों को
पुरोहिताई। इस प्रकार पुष्करणे ब्राह्मणों की प्रत्येक जाति (नख वा खांप) वाले किसी न किसी राजपूत जाति के पुरोहित थे । फिर उन राजपूतों से और कई जातियें बन गई तो वे जाति वाले भी अपनी पूर्व जाति के पुरोहित पुष्करणे ब्राह्मणों को अपनी नवीन जाति के लिये भी पुरोहित मानते रहे। जैसे:
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