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परन्तु महा ब्राह्मणों में कर्म छुड़ा देनेपर भी नाथाजीने उनका कुछ नेग नियत कर दिया था वह तो अब तक जारी है। देखो रिपोर्ट मर्दुम शुमारी राज्य मारवाड़कं तीसरे भागके पृष्ठ १८१)
पुष्करणे ब्राह्मणो को तीर्थ पुरोहिताई। सिन्ध और कच्छ देशोंके बीचमें समुद्र के किनारेपर 'नारायण सरोवर' नामका एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। पूर्वकाल में इन देशोंमें यदुवंशियों का राज्य होनेसे इस तीर्थ पर यदुवंशी भी अधिकतासे आते थे । अतः अपनी तीर्थयात्रा सफल करानेके लिये अपने पुरोहित पुष्करणोंको भी साथ २ ले आते थे। फिर अन्त में कई पुष्करणे ब्राह्मण वहीं पर वस गये तब से उनकी सन्तानवाले नारायण सरोवर पर आनेवाले अपने यजमानों की तीर्थ पुरोहिताई आजतक करते आये हैं ।
पुष्करणे ब्राह्मण राज्य विद्यागुरु ।
राजकुमारों को विद्या पढानेके प्रारम्भ का मुहूर्त तो जो पुष्करणे ब्राह्मण राज्य ज्योतिषी हैं वे नियत करते हैं परन्तु विद्या पढ़नेका प्रारम्भ भी सबसे प्रथम तो जो पुष्करणे ब्राह्मण राज्य विद्यागुरु हैं उन्ही से करते हैं ।
इस इदपर बीकानेर के राज्य में तो सदा से रङ्गा जातिके हैं तो इससे क्या पुष्करणोंकी भी समग्र जातिही को श्रीमालियोंकी सम्पूर्ण भातिही का गुरु मानना पड़ेगा ? नहीं । क्योंकि ये दोनों सम्बन्ध समस्त माति भरके साथ नहीं किन्तु व्यक्ति विशेष के हैं । अतः नतो सम्पूर्ण श्रीमाली समग्र पुष्करणों को अपने यजमान समझ सकते हैं और न सम्पूर्ण पुष्करणेभी समग्र श्रीमालियों को अपने शिष्य समझ सकते हैं।
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