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क्रोधित होके उन्होंने किला न बन सकने आदि का श्राप दे दिया । अन्त में उस श्रापको मिटानेके लिये एक जीते हुए मनुष्यको किले की नींवमें गाडनेकी आवश्यकता आ पड़ी, तो एक पुरोहित जाति का पुष्करणा ब्राह्मण प्रसन्नता पूर्वक जीता हुआ ही किले की नींवमें गड़ गया, तब उसके ऊपर किला बन सका इससे प्रसन्न होके राव जोधाजीने उनके भाई को अपना गुरु बना के 'व्यास' पदवी तथा गांव दिया था। (देखो रिपोर्ट, मर्दुम शुमारी, राज्य मारवाड़, के तीसरे भागका पृष्ठ १८३)
पुष्करणे ब्राह्मण राज प्रतिनिधि । जोधपुर के महाराजा गजसिंहजी के क्रोधित हो जाने से उनके ज्येष्ठ पुत्र अमरसिंहजी शाहजहाँ बादशाहके पास चले गये थे। बादशाहने इनको नागौरका पृथक् राज्य दे दिया । किन्तु एक समय उन्होंने आगरेमें बादशाह के कृपापात्र बखुशी सलावतखाँ को तकरार हो जाने के कारण सरे दरबार मार डाला
और अपने डेरेको प्रस्थान कर दिया । किन्तु गढ़ का द्वार तकाल बन्द कर देने से खिड़की तोड़कर बाहर निकलना ही चाहते ही थे कि उन्हीं के साथी और साले होने पर भी अर्जुन गौड़ ने बादशाहका कृपापात्र बनने के लिये पीछेसे खड्ग चलाके उन्हें मार दिया। फिर बादशाहने उनके शरीरकी दुर्दशा करनी चाही किन्तु उनके डेरेके सब राठौड़ बल्लूजी चाँपाबत व भाऊजी . पाँवत नाम अपने मुख्य दो सरदारों सहित गढ़पर चढ़ आये और द्वार तोड़ के अमरसिंहजी के कलेवर ( शव ) को निकाल लाये । फिर अर्जुन गौड़ के डेरे पर चड़ धाये।
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