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उसने भी अपनी पूर्व पुष्करणा जाति के सवासने (अपने भानने) 'सज्जोनी' नामक चाहटिये जोशी को अपनी नवीन चारण जाति के लिये पुरोहित बनाया था सो आजतक रत्न चारणों के यहां भो पुगेहिताई पुष्करणे ब्राह्मण चोहटटिये जोशियों की चली आती है । ( देखो रिपोर्ट मर्दुमशुमारी राज्य मारवाड़ के भाग तीसरे का पृष्ठ १६१) ___अतः पुष्करणे ब्राह्मणों के पूर्वोक्त सवासनों को सन्तान वाले आजतक सिन्ध, कच्छ, जैसलमेर, फलौधी, पोकरण, जो. धपुर, नागौर मेड़ता, बीकानेर आदिके पुष्करणे ब्राह्मणों की पुरोहिताई करते आये हैं। परन्तु जोधपुर इलाके में पुष्करणे ब्राह्मणो की पुरोहिताई करनेवाले पुष्करणे ब्राह्मगों के घर बहु तही थोड़े होने से अपने सम्पूर्ण यजमानों की पुरोहिताई करने में पूग नहीं आसकने के कारण अपनी ओर से कर्म कराने की दक्षिणा (महनताना) ठहराके श्रीपाली ब्राह्मणों से करा देते हैं किन्तु पुरोहिताई का जो नेग मिलता है उसे तो वे स्वयंही लेते हैं । इसके उपरान्त जिन २ पुष्करणे ब्राह्मणों की पुरोहिताई करनेवाले पुष्करणे ब्राह्मण कहीं पर हाज़िर नहोंतो वहां के वे २ पुष्करण ब्राह्मण भी कर्म तो दक्षिणा दे के श्रीमालि. योंसे करा लेते हैं किन्तु पुरोहिताई का नेग अपने सवासनों को देते हैं।
इसके उपरान्त मृतक का तीसरा, नवां, एकादशा, द्वादशा आदि प्रेतकर्म मारवाड़ भर पहिले महा ब्राह्मण (जो अब आचारजिया वा कारटिया नामसे प्रसिद्ध है वे) कराते थे। परन्तु वें लोग कर्म कराने की दक्षिणा लेने में बहुत ही कष्ट देते थे । इस पातको देखकर पुष्करणे ब्राह्मण 'श्रीमान् नाथाजी व्यास'ने सं०
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