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वालों के पुरोहित विशा जाति के पुष्करणे ब्राह्मण थे इस लिये टावरियों ने भी उन्हीं के पुरोहितों को अपने लिये पुरोहित मानेथे सो आज तक वैसे ही मानते चले आये हैं।
अग्रवाल महाजनों की पुरोहिताईमारवाड़में के गोयल गोती अग्रवाले विशा जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानते हैं।
इसी प्रकार किराड़ वाणिये, रत्नू चारण, काले सुनार, सई मूथार, सेवग ( भोजक ) ब्राह्मण आदि और और कई जाति वाले भी पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानते हैं।
पुष्करणे ब्राह्मणों के पुरोहित भी पुष्करणे ही
ब्राह्मण । ब्राह्मण परस्पर में भोजन कराते और करते हैं, परस्पर में पूजते और पुनाते हैं, परस्पर में दान देते और लेते हैं, अतः परस्पर में एक दूसरेको तारते हैं और आप भी तर जाते हैं । इस में 'संवर्तस्मृति' का यह प्रमाण है यथाः
अन्योन्यानप्रदा विप्रा अन्योन्य प्रतिपूजकाः। अन्योन्यं प्रतिगृह्णन्ति तारयन्ति तरन्ति च ॥
इसो लिये ब्राह्मण परस्पर में भोजनादि करते कराते हैं परन्तु भोजनादि करानेमें भी अन्य ब्राह्मणो की अपेक्षा स्वजाति के ब्राह्मणों का विशेष फल बताया है और स्वजातिमें भी
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