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की जाति बनी है जिन की गोड्या और छुर्या नामक २ शाखा एं हो गई । उनके पुरोहित प्रथम तो पुरोहित जाति के पुष्करणे ब्राह्मण थे। फिर उन्होंने अपनी विरत अपने भानजे विशा जातिवालों को देदी तब से वे विशा जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानते हैं ।
'भाटी' जाति के राजपूत से ' माळ पाणी ' नामकी जाति बनी है जिसकी माळ पाणी, मूथा, मोदी, जूहर, लुलाणी, कोलण और भूरा नामक ७ शाखाएं हो गईं वे सब छाँगाणी जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानते हैं ।
'पवार' जाति के राजपूत से 'पडताणी' नाम की जाति बनी है जिसकी पडताणी, पुण्य पालिया और दागड़िया नामक ३ शाखाएं हो गई इनके भी पुरोहित प्रथम तो पुरोहित जाति के पुष्करणे ब्राह्मण थे । उन्होंने अपनी विरत अपने भानजे विशा जातिवालों को देदी तब से वे विशा जाति के पुष्करणे ब्राह्मणोंको पुरोहित मानते हैं ।
'चौहान' जातिके राजपूत से 'सारड़ा' नामकी जाति बनी है जिसकी केला सारड़ा और सेठी सारड़ा आदि शाखाएं हो गई वे वासू जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों कों पुरोहित मानते हैं । 'पवार' जातिके राजपूत से 'सिकची' नाम की जाति बनी हैं वह चोहटिया जोशी जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानती है |
' झाला ( मकवाणा ) जाति के राजपूत मालदेजी के बेटे हमीरजी से 'टावरी' नाम की जाति लुवा नगर के भाटी राजा सुन्धजीने अपने दीवान महेश्वरी पुरुषोत्तमदास मल्ल की बेटी व्याह के सं० १०३० के लगभग में बनाई है और हमीरजी के सुसराल
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