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१६८० के लगभग अपनी ओरसे उन महा ब्राह्मणों को सहस्रो रुपये दे के लोगों का कष्ट मिटा दिया और प्रेतकर्म कराने के लिये श्रीमाली ब्राह्मणोंको नियत किये क्योंकि मारवाड़ के ब्राह्मणों में कर्म कराने का पेसा करनेवाले प्राय:श्रीमालो ब्राह्मण ही हैं। तबसे पुष्करणों के यहां भी प्रेतकर्म श्रीमालो ब्राह्मण कराते हैं* ___* इस प्रकार मारवाड़में जिन २ पुष्करणे ब्राह्मणोंके यहां कर्म करानेवाले जो श्रीमाली ब्राह्मण हैं वे उन २ पुष्करणोंको अपने २ यजमान समझके आशीर्वाद देने लग्गये और वे पुष्करणे भी अपने २ कर्म करानेवालों को आचार्य समझकर पगे लागना करने लागये हैं। इस बात को देखकर कितनेक अन्यान्य भी अनभिज्ञ श्रीमाली लोग पुष्करणों को समग्र जातिही को अपने यजमान होनेका खयाल करने लगगये हैं । किन्तु ऐसा खयाल करनेवालों की बड़ी भारी भूल है । क्योंकि:
प्रथम तो सिन्ध, कच्छ, गुजरात, मारवाड, पञ्जाब आदिमें पुष्करण ब्राह्मणों के घर अनुमान २०००० होंगे जिनमें केवल मारवाड इलाके के ३००० । ४००० ही घरवालों के यहां श्रीमाली कर्म कराते हैं न के सर्व देशों में। दूसरे जो कर्म कराते भी हैं तो पुष्करणों के प्राचीन पुरोहित जो पुष्करणेही हैं उनकी आज्ञासे अथवा उनके अभावमें उन्होंके प्र. तिनिधि बनके कराते हैं न के अपने स्वाधिकार से। तीसरे मारवाड़ में श्रीमालियों के घर सहस्रोही हैं उनमें पुष्करणों के यहां कर्म कराने के लिये तो केवल १० । २० ही घर नियत हैं न के उनकी सर्व जाति । तो फिर क्योंकर सम्पूर्ण श्रीमाली अपने को पुष्करणों की समग्र जातिके पुरोहित वा कर्म करानेवाले कुलगुरु समझ सकते हैं ? यदि इतनीसी वातही से एसा मानना पड़े तबतो फिर ऐसे तो कई श्रीमाली भी तो पुष्करणोंके शिष्य बनके उनसे ज्योतिष् , वैद्यक, व्याकरण आदि विद्याए पढ़ते
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