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तुंवर राजपूतों की पुरोहिताईसायलमेर के तुंवर राजपूत राजाओंने छाँगाणी जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानथे । और कई पीढ़ी पीछे 'बाँकना' नाम एक गाँव दत्त दियाथा वह गाँव आजतक पुष्करणे ब्राह्मणों के स्वाधीन है।
पड़िहार-ईदा राजपूतोंको पुरोहिताई
मण्डोर के पड़िहार राजपूत राजाओंने कपटा (बोहरा) जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानेथे । परन्तु कई पोढ़ो पीछे पड़िहारों की एक शाखा ईदा राजपूतों को कन्याओं का विवाह करा देने की दक्षिणा देने लेने में बहुत विवाद हो जाने से इन की पुरोहिताई छोप दी। इतनाही नहीं किन्तु ईदोंके गाँव में भी नहीं जाते और जो कभी भूलसे भो चले जावें तो उस गाँव में पानी तक नहीं पोते और न ईदोंको आशीर्वाद देते हैं।
राठौड़ राजपूतों की गुरु पदवीराठौड़ कन्नौज से जब मारवाड़ में आये तो इनके पुरोहित भी वहींसे इनके साथ आये थे इस लिये पुरोहित तो उन्ही ब्राह्मणों को रखे जो अब सेवड़ नामसे 'राजगुरु पुरोहित 'प्र. सिद्ध हैं । परन्तु इस देशके राजाओं के पुरोहित पुष्करणे ही ब्राह्मण सदासे रहते आये हैं इस लिये राठौड़ोंने भी पुष्करणे ब्राह्मणों को राज्य शुरु' माने सो इस प्रकार मानते चले आये हैं:आयस्थानजीसे लेके चन्द्रसेन जी तक छाँगाणियों को उदयसिंहजी से लेके रामसिंहजी तक नाथावत व्यासोंको,
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