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खेतीके उपयोगी कुछ भूमि देकर उन्हें ओशियां नगर वसा लिये थे जिनकी सन्तान आजतक ओशीया नगरमै वसते हैं।
लुद्रवा नगर के पँवारोंने आचार्य जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानेथे । फिर कई पोढ़ी पीछे सं० ५३? में 'काहला' नाम एक गाँव भी अपने पुरोहितों को दिया था। जिस का वृत्तान्त पुष्करणे प्राह्मणों की प्राचीनताके सं० ५३१वें के प्रमाणमें लिखा है।
अमरकोट तथा घाट आदि के पँवारोंकी एक शाखा सोढा राजपूनोंने भी आचार्य जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानेथे सो आजतक उनकी पुरोहिताई चली आती है।
पुगल के पंवार राजाओंने छाँगाणी जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित माने थे ।
इसी प्रकार अन्यान्य पँवार राजाओं के यहां भी पुष्करणे ही ब्राह्मण पुरोहित नियत थे।
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बाराह राजपूतों की पुरोहिताईभठिण्डेके बाराह जातिके राजपूत राजाओंने बोधा जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानेथे। फिर कई पीढ़ी पीछे उनके पुरोहित देवायतजीने अपने सरणमें आये हुये भाटी राजकुमार दे. वराजको अपना पुत्र कहकर अपने यजमान बाराह रजपूतों से बचा लिया तबसे फिर भाटियों के पुरोहित हो गये। जिस का वृत्तान्त पुष्करणे ब्राह्मणों की प्राचीनताके सं० ८९८ में लिखा है।
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