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भाटी राजपूतों की पुरोहिताईयदुवंशियों में भाटीजी नाम एक बहुत बड़े नामी और प्रतापी राजा सं० ३३६ में लाहोर में हुये । उन्होंने अपने नामपर पञ्जाब में 'भटनेर' नगर बसायाचा जो अब बीकानेरके राज्य में 'हनुमानगढ़' नामसे प्रसिद्ध है। भाटीनीकी तथा उनके ७ भाइयों की सन्तान राजपूतों में भाटी कहलाये। उनसे २० पोढ़ी पीछे तणोट नगरके भाटी राजा विजयराजके पुत्र कवर 'देवराज'ने यात्रुओंके हाथ मारे जानेके भयसे पुष्करणे ब्राह्मण देवायतजी के शरणमें आके रक्षा पाई तब इन्हें गुरु माना । तबसे अर्थात् भा. टियों की ३६ पीढियों से उनके पुरोहित पुष्करणे ब्राह्मण देवायतजीके वंशवाले ही चले आते हैं।
पँवार राजपूतों की पुरोहिताईयदुवंशियों के पश्चात् पँवारों का राज्य इस देशमें फैला था तो पँवारोंने भी पुष्करणे ही ब्राह्मणों को अपने पुरोहित बनाये थे जैसे:
ओशीयां नगर के पवार राजाओंने ४ गोत्र के तोपुष्करणे ब्राह्मणों को भी पुरोहित मानेथे किन्तु उन पँवारों से सं०२२२में जैनी ओसवालों की जाति बन गई तो उनके पुरोहितभी उनके घर में भोजन कर लेने से "भोजग" कहलाये उन्ही के साथ ४ गोत्र वाले पुष्करणे ब्राह्मणभी मिल गये जिसका वृत्तान्त पुष्करणे ब्राह्मणों की प्राचीनता के सं० २२२ के प्रमाण में लिखा है।
उस समय जो पँवार जैनी हो जानेसे बच गयेथे उनोंने छाँगांणी जातिके पुष्करणे ब्राहाणों को अपने लिये पुरोहित माने थे और
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