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नाहरराव मानले तो भी वहभी तो सं० ८०० के पीछे ही हुआ है । क्योंकि उसी शिलालेखमें भाटी राजा देवराजसे (सं० ९१५ के पीछे ) युद्ध करनेवाले पड़िहार राजा शिलुकसे नागभट को ५ पीढ़ी पहिले हुआ लिखा है और ५ पीढ़िये अधिकसे अधिक १०० । १२५ वर्षों में तो अवश्य ही समाप्त हो गई होगी। अतः नागभट भी सं० ८०० के तो पहिले कदापि नहीं हो सकता। परन्तु पुष्करणे ब्राह्मण तो नागभट के समयसे भी बहुत ही अ. धिक समय पहिले ही से मारवाड़ में विद्यमान थे जिस के कई प्रमाण पहिले लिखे जा चुके हैं।
उपरोक्त प्रमाणोंसे पाठक भली भाँति समझ गये होंगे कि पुष्करजी की उत्पत्तिमें कोई २ लोग जो मतभेद मानते हैं वह केवल उनका भ्रम है। किन्तु फिर भी उस भ्रमकोभी 'दुर्जनतोष न्याय से मानभी लें तोभी पुष्करणे ब्राह्मणों की प्राचीनता में तो कुछ भी बाधा नहीं आती । क्यों कि येतो उपरोक्त मतभेद में बताये हुये समयसे भी सैकड़ों ही बर्ष पहिले से विद्यमान हैं जिसकी सत्यता के कई पुष्ट प्रमाण पाठक पढ़ ही चुके है और आगे भी पढ़ेंगे।
पुष्करणे ब्राह्मणों की राज्य पुरोहिताई।
यदुवंशी राजपूतों की पुरोहिताईपुष्करणे ब्राह्मणों की जाति के अग्रगण्य (मुख्य ) महर्षि गर्गाचार्यजी थे । इस लिये यह जाति 'गर्गमती' कहलाती है।
और गर्गाचार्यजी यदु वंशीयों के पुरोहित (कुलगुरु) थे । अतः यदुवंशी मात्र पुष्करणों की समग्र जाति को भी अपना पुरोहित
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